आइएं जानें अपने पाचन तंत्र को
ग्रासनली (Esophagus)
ग्रासनली लगभग 25 सेमि. (10 इंच) लम्बी तथा लगभग 2 सेमी चौड़ी एक संकरी पेशीय नली होती है जो मुख के पीछे गलकोष से आरंभ होती है, वक्ष से थोरेसिक डायफ्राम (Thoracic Diaphragm) से गुजरती है और उदर स्थित ह्रदय द्वारा पर जाकर समाप्त होती है।
ग्रासनली की दीवार पतली मांसपेशियों की दो परतो की बनी होती है।
ग्रासनली के शीर्ष पर उत्तकों का एक पल्ला होता है जिसे एपिग्लॉटिस (Epiglottis) कहते है जो निगलने के दौरान ऊपर बंद हो जाता है जिससे भोजन श्वासनली में प्रवेश न कर सके।
चबाया गया भोजन इन्ही पेशियों के क्रमाकुंचन के द्वारा ग्रासनली से होकर उदर तक धकेल दिया जाता है।
ग्रासनली से भोजन को गुजरने में केवल सात सेकंड लगते है और इस दौरान पाचन क्रिया नही होती।
आमाशय (Stomach)
आमाशय, ग्रासनली तथा डर्योड़ीनस के बीच, डायफ्राम के नीचे, प्लीहा के दायेओर तथा आंशिक रूप से यकृत पोषण-नली (भोजन-नली) का थैलीनुमा भाग होता है।
इसका अधिकांश (लगभग 5/6) भाग शरीर की मध्य रेखा के बायीं ओर तथा शेष भाग दायी ओर स्थित होता है।
इसके आगे यकृत का बांया खण्ड तथा अग्र उदरीय भित्ति होती है।
इसके पीछे उदरीय महाधमनी, अग्न्याशय, प्लीहा या तिल्ली, बायाँ वृक्क एव एड्रिनल ग्रंथि स्थिर होती है।
इसके ऊपर डायफ्राम, ग्रासनली तथा यकृत का बायाँ खण्ड होता है।
नीचे बड़ी आँत की अनुप्रस्थ कोलन होती है तथा छोटी आँत होती है।
इसके बायीं ओर डायफ्राम और प्लीहा तथा दायी ओर यकृत और डर्योड़ीनस होता है।
यह फण्डस अथवा ऊपरी गोल भाग, एक काय या बीच के भाग तथा जठर-निर्गम या पाइलोरस अथवा दूरस्थ छोटे भाग से मिलकर बना होता है।यह जठर-रस स्त्रवित करता है जो भोजन के साथ मिश्रित होकर आँतो के द्वारा आगे पाचन के लिए उपयुक्त्त काइम, एक अर्द्धठोस पदार्थ बनाता है।
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