छोटी आंत की मूवमेंट तीन प्रकार की होती है:
(1) सेगमेन्टेशन |
(2) पेन्डुता |
(3) तथा पेरिसटेलसिस ।
1. सेगमेन्टेशन:
ये भोजन के मिश्रण, अवशोषण व आगे ठेलने में मदद करते है । सेग्मेन्टेशन में अरेखीय पेशियों के वृत्ताकार कान्ट्रेक्शन होते हैं जो आंत में स्थित पदार्थो को सेग्मेन्टों में बांट देते हैं । ये कान्ट्रैक्सन फिर ढीले होते हैं तथा नये कान्ट्रैक्शन इनके बीच फिर बनते हैं । सेग्मेन्टेशन की दर डियाडिनम से सबसे अधिक होती है । इसका नियंत्रण छोटी आंत की दीवार में स्थित नर्व प्लेक्सस द्वारा होता है । इस प्रकार की तरंगे भोजन में इन्टेस्टिनल जूस के मिलन में बहुत मदद करते हैं ।
2. पेन्ड़ुलर मूवमेन्ट:
आंत में उपस्थित पदार्थो को म्यूकोसा की सतह पर आगे-पीछे करते हैं । इस प्रकार की गति, भोजन के जूसों से मिलने व अवशोषण में मदद करती हैं ।
3. पेरिस्टैलसिस:
छोटी आंत में तेजी से होने वाली गति आंत में स्थित पदार्थों को इलियोसीकल वाल्व की ओर ले जाती है ।
छोटी आंत में भोजन का अवशोषण:
छोटी आंत में उपस्थित विलाई इसके सरफेस एरिया को बहुत बढ़ा देते हैं जिससे भोजन का अवशोषण अच्छी प्रकार से हो सकता है ।
बड़ी आंत:
छोटी आंत में स्थित पदार्थ द्रव के रूप में होते हैं जो इलियोसीकल वाल्व द्वारा गुजर कर सीकम और कोलन में पहुंचते हैं । केवल लगभग 100 मिली॰ पानी ही रेक्टम में प्रतिदिन पहुंचता है, बाकी सीकम व असेण्डिंग कोलन में सोख लिया जाता है ।
मास पेरिस्टेल्सिस कोलन के पदार्थो को रेक्टम की ओर ढकेलती है । यह प्राय: होती रहती है । पर खाने के पश्चात अधिक तीव्रता से होती है इसे गेस्ट्रोकोलिक रिफलेक्स कहते हैं ।
मलत्याग:
रेक्टम में मल की उपस्थिति मलत्याग की इच्छा पैदा करती है । मल रेक्टम में इकट्ठा होता है । रेक्टम की दीवारों में होने वाले खिचाव से इसमें स्थित सेन्सरी तन्त्रिकायें ऐनल स्फिन्कटर को ढीला करवाती है तथा उदर व डायाफ्राम को सिकोड़ती हैं जिससे उदर का दाब बढ़ जाता है ।
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