गैस्ट्रिक जूस के कार्य:
(a) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पेट के पदार्थो को अम्लीय करता है जो भोजन के साथ पेट में पहुंचे बहुत सारे कीटाणुओं को नष्ट कर देता है ।
(b) पेप्सिन प्रोटीन के पाचन की शुरुआत इसे पेप्टोन व प्रोटीओज में तोड़कर करता है ।
(c) म्यूकस ग्रैस्ट्रिक म्यूकोसा के ऊपर एक सतह बनाता है जो क्षारीय होती है और म्यूकोसा की रक्षा पेप्सिन व हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से करती है ।
(d) इन्ट्रिन्सिक फैक्टर विटामिन बी – 12 से जुड़कर इलियम में अवशोषित हो जाता है ।
गैस्ट्रिक जूस के स्राव का नियंत्रण:
इसकी दो विधियां हैं: तंन्त्रिका तन्त्र द्वारा व ह्यूमोरल विधि द्वारा ।
तन्त्रिका तन्त्र द्वारा:
भोजन का दर्शन, गन्ध व स्वाद गैस्ट्रिक स्राव को बेगस नर्व द्वारा उत्तेजित करता है ।
हयूमोरल:
भोजन की पाइलोरिक एन्ट्रम में उपस्थिति व वेगस का उत्तेजन पाइलोरिक गैस्ट्रिक म्यूकोसा से एक हारमोन का स्राव कराता है जिसे गैस्ट्रिन कहते हैं । गैस्ट्रिन रक्त में जाकर पेराइटल सेलों को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निकालने के लिए उत्तेजित करता है । गैस्ट्रिक एसिड का स्राव डर, मितली व पाइलोरिक एन्ट्रम में अधिक अम्ल होने से और डियोडिनम में वसा के होने से कम हो जाता है ।
छोटी आंत भोजन के पाचन व अवशोषण में मुख्य रूप से भाग लेती हे । आमाशय से कुछ पचा हुआ भोजन डियोडिनम बे पहुंचता है जिसे काइम कहते हैं । छोटी आंत में काइम में पहले पैन्क्रियाटिक जूस व पित्तरस (बाइल) और फिर सक्कस इन्टेरिकस मिल जाता है । पैन्क्रियाटिक जूस में एमाइलेज, प्रोटीन तोड़ने वाले एन्जाइम, लवण व बाइकार्बोनेट आयन पाये जाते हैं ।
पैन्क्रियाटिक जूस के कार्य:
i. पैन्क्रियाटिक जूस में बाइकार्बोनेट आयन अधिक मात्रा में पाये जाते हैं जो गैस्ट्रिक जूस के अम्लीय प्रभाव को समाप्त करते हैं तथा हल्का क्षरीय माध्यम पैदा करते हैं जो पैन्क्रियाटिक जूस के लिए उपयुक्त है ।
ii. एमाइलेज स्टार्च को माल्टोज में तोड़ते हैं ।
iii. लाइपेज न्यूट्रलवसा को ग्लिसराल व फैट्टी एसिडों में तोड़ता है ।
iv. ट्रिपसिनोजन इन्टरोकाइनेज से मिलकर कार्यशील ट्रिप्सिन में परिवर्तित हो जाता है जो प्रोटीन प्रेटिओजो व पेप्टोनो को पेप्टइड तथा एमिनों एसिडों में तोड़ देता है ।
v. काइमो ट्रिपसिनोजन ट्रिप्सिन द्वारा अपने कार्यशील रूप काइमोट्रिप्सिन में बदलकर प्रोटीन को छोटे पालीपेप्टाइडों में तोड़ता है । यह दूध को भी जमाता है ।
vi. कार्बाक्सीपेप्टाइड पेप्टाइडों को एमीनों एसिडों में तोड़ते हैं ।
पैन्क्रियाटिक जूस के स्राव का नियंत्रण:
इसका नियंत्रण नर्वस तथा ह्यूमोरल दोनों विधियों से होता है । खाने के तुरंत बाद वेगस द्वारा जाने वाली तरंगें इसका स्राव कराती हैं । एसिड काइम डियोडिनम या जेजुनम में पहुंचकर सिक्रिटिन व पैन्क्रियोजाइमिन हारमोनों के स्राव को उत्तेजित करता है जो रक्त संचार में जाकर पेन्क्रियाज को जूस के स्राव के लिए उत्तेजित करते हैं ।
पित्त रस:
पित्त का स्राव लगातार यकृत द्वारा किया जाता है जो पित्ताशय में गाढ़ा होता है क्योंकि स्फिन्कटर ऑफ ओडई प्राय: बन्द होता है । पित्त में पानी, लवण, म्यूकस, बाइल लवण, बाइलपिगमेन्ट व कोलेस्टरोल होते हैं । बाइल लवणों के मुख्य कार्य सर्फेस टेन्शन घटाकार बसा का इमल्सीकरण करना है ।
यह वसा, फैट्टी एसिडों, ग्लिसराल व वसा में घुलनशील विटामिनों के अवशोषण में मदद करता है । वाइल पिगमेन्ट पित्त को रंग प्रदान करते हैं । पित्त का स्राव भी नर्वस व ह्यूमोरल विधियों से नियंत्रित होता है । डियोडिनम में वसा तथा मांस की उपस्थिति एक हारमोन कोलीसिस्टोकायनिन के स्राव को उत्तेजित करते हैं ।
यह पैन्क्रियाजाइमिन के समान होता है । वेगस नर्व स्फिन्क्टर ऑफ ओडाई को ढीला करती है तथा पित्ताशय को कान्ट्रेक्ट कराती है । सक्कस इन्टेरिकस छोटी आंत की ग्रन्थियों से निकलता है । इसमें पानी, लवण, बाइकार्बोनेट आयन व एन्जाइम होते हैं । ये एन्जाइम कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन व वसा को इनके सरल रूपों में तोड़ते हैं ।
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