मूत्र त्याग:
यह एक इन्वोलन्टरी रिफलक्स है जो वोलन्टरी कन्ट्रोल से जुड़ा है । जब मूत्राशय मूत्र से भरना शुरू होता है तो पहले इसका दाब अधिक हो जाता है तो इसकी दीवार में स्थित स्ट्रेच रिसेप्टर स्टीमुलेट हो जाते हैं । यहां से जाने वाली तरंगें पैरासिम्पैथेटिक मिक्चयूरेटिंग रिफलेक्स सेन्टर को उत्तेजित करते हैं जिससे मूत्राशय का रिफलेक्स कान्ट्रेक्सन व स्फिन्कन्टरों का रिलेक्सेसन हो जाता है व मूत्र बाहर निकाल दिया जाता है ।
यहां तक कोई कान्शियस सेन्सेशन नहीं होता है पर जब मूत्राशय में मूत्र की मात्रा 500 मिली॰ हो जाता है तो यह दुखदायी हो जाता है । इसके अलावा सेरेब्रल कार्टेक्स का इक्सटर्नल स्फिन्कटर के ऊपर वोलेन्टरी कन्ट्रोल होता है ।
स्पानल कार्ड या सेव्रव्रल इन्जरी होने पर यह ऐक्षिक कन्ट्रोल समाप्त हो जाता है तथा इन्कान्टिनेन्स (Incontinence) हो जाती है । कुछ स्थितियों जैसे उदर की शल्य क्रिया के पश्चात रोगी मूत्राशय में अधिक मूत्र होने पर भी आ त्याग नहीं कर पाता है
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