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रविवार, 21 दिसंबर 2025

सामान्य दृष्टि-दोष (Error of Reflection):

 सामान्य दृष्टि-दोष (Error of Reflection): 

आँखों में अनेक प्रकार के दोष हो जाते हैं । इनमें दृष्टि वैषम्य (Astigmatism), भेंगापन, मोतियाबिन्द आदि प्रमुख हैं । किन्तु अधिकांशत: दो नेत्र दोष व्यक्तियों में पाये जाते हैं, जिनमें एक निकट दृष्टि या मायोपिया (Myopia) और दूसरा दूर-दृष्टि होता है ।


मानव के नेत्र गोलक सामान्यत: जन्म के समय लगभग 17.5 मिमी. तथा वयस्कों में 20-21 मिमी. के होते हैं । नेत्र गोलक में घुसने वाली समस्त प्रकाश किरणें कार्निया लेंस आदि पर टकराकर रेटिना से पहले ही केन्द्रित हो जाती हैं, और फिर रेटिना पर पड़ती है ।


इस प्रकार सामान्य नेत्रों द्वारा हम 10 सेमी. से 50 सेमी दूर की वस्तुओं को साफ देख सकते हैं । किन्तु कभी-कभी नेत्र गोलक के कुछ छोटे होने पर या बड़े हो जाने पर लैस सिलियरी पेशियों की लचक कम हो जाने के कारण ही निकट दृष्टिदोष या दूर दृष्टि दोष उत्पन्न हो जाते हैं ।


(1) दूर दृष्टि दोष:


इसके अन्तर्गत नेत्र गोलक के छोटे हो जाने से किरणों का केन्द्रीयकरण रेटिना से पीछे होता है, जिससे दूर की वस्तुएँ तो साफ दिखाई देती हैं, किन्तु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई नही देती हैं ।


इस दोष को मिटाने के लिए उत्तल लेंस (Convex) प्रयोग में लाया जाता है, जिससे किरणों की अभिबिन्दुकता बढ़ जाती है और उनका केन्द्रीयकरण रेटिना पर होता है । ये लेंस कॉर्निया द्वारा किरणों के नेत्र में प्रवेश होने से पहले ही उनको अभिबिन्दुक कर देते हैं ।


दूर दृष्टि-दोष के निम्न लक्षण (Symptoms) है:


(i) निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं ।


(ii) आखों से पढ़ते समय पानी बहने लगता है ।


(iii) आँखों की गुहा में तथा सिर में दर्द रहने लगता है ।


(iv) पढ़ने-लिखने, सिलाई तथा बीनने आदि बारीक कामों में अत्यधिक दिक्कतें होती हैं ।


(v) प्राय: पुस्तक को बहुत पास लाकर पढ़ना पड़ता है ।


(2) निकट दृष्टिदोष या मायोपिया:


निकट दृष्टि-दोष में प्राय: नेत्र गोलक के बड़े हो जाने पर या कार्निया अथवा लेंस के अधिक मोटा हो जाने के कारण रेटिना तथा केन्द्रित बिन्दु के बीच की दूरी बढ़ जाती है । अत: निकट दृष्टि दोष में पास की वस्तुएँ तो साफ दिखाई देती हैं, किन्तु दूर की वस्तुएँ प्राय: धुँधली दिखाई देती हैं ।


अवतल लेंस के द्वारा इस दोष को दूर किया जा सकता है । यह दोष प्राय: कम उम्र के बच्चों में भी हो जाता है । वैसे 18 -20 वर्ष की आयु के बच्चों की अस्त्रों में प्राय: यह दोष पाया जाता है । 

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