रेनिन का निर्माण:
रेनिन का स्राव सोडियम की मात्रा या रक्त चाप कम होने पर होता है । रेनिन रक्त में उपस्थित एन्जियोटेन्सिनोजन को एन्जिटेन्सिन-1 में, जो एन्जियोटेन्सिन-2 में परिवर्तित होकर एड्रिनल कार्टेक्स से एल्डोस्टेरान के स्राव को बढ़ाता है । एल्डोस्टेरान गुर्दे में सोडियम के अवशोषण को बढ़ाता है । जिससे रक्त का आयतन और रक्त दाब बढ़ता है ।
5. गुर्दे इरेथ्रोपोयटिन (Erythropoetin) का निर्माण करते हैं जो अस्थिमज्जा को लाल रक्त कणिकाओं के अधिक निर्माण हेतु उत्तेजित करता है ।
यूरेटर:
गुर्दी द्वारा बना हुआ मूत्र, मूत्राशय तक यूरेटरों द्वारा पहुंचता है । यह लगभग 25 से॰मी॰ लम्बी नलियां होती हैं जो गुर्दे की पेल्विस से मूत्राशय के पिछले भाग तक फैली होती हैं । इसकी दीवार तीन पतों वाली होती है ।
1. आन्तरिक म्यूकस सतह जो ट्रान्जीसनल इपीथीलियम से बनी होती है ।
2. मध्य की मस्कुलर सतह, जो बाहरी सरकुलर तथा अन्दर लन्गीट्रयूडिनल पेशियों से बनी होती है ।
3. बाहरी फाइब्रस सतह, जो बाहरी फाइब्रस रीनल कैप्सूल से मिल जाती है ।
मूत्राशय:
यह खिंच सकने वाली मूत्र को एकत्रित करने वाली थैली है जो 200-300 मिली॰ मूत्र इकट्ठा कर सकती है । यह सिम्फाइसिस प्यूविस के ठीक पीछे स्थित होती है । इसकी अगली सतह पेराइटल पेरीटोनियम से ढकी रहती है (चित्र 3.50) । पुरुषों में इसके पीछे रेक्टम, वासडिफरेन्स और सेमिनल वेसिकिल स्थित होते है, तथा मूत्राशय की गर्दन पौस्टेट ग्रन्थि पर स्थित होता है
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