google.com, pub-,8818566653219942, DIRECT, f08c47fec0942fa0 "स्वास्थ्य संबंधित ताजा जानकारी" 🪫The latest health updates: शलाका एवं शकु में भेद निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है: expr:class='"loading" + data:blog.mobileClass'>

रविवार, 21 दिसंबर 2025

शलाका एवं शकु में भेद निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है:

 शलाका एवं शकु में भेद निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है: 

(1) संरचनात्मक भिन्नता (Structural Impression):


शंकु आकार में छोटे एवं मोटी संरचना वाले तत्व होते हैं, जबकि दण्ड देखने में पतले एवं लम्बी संरचना वाले होते हैं । दण्डों में अन्धकार के समय एकत्र होने वाला एक पदार्थ क्रियाशील रहता है । इस पदार्थ को दृष्टि धूमिल (Visual Purple) कहते हैं । शंकु दण्डों की तरह एकत्र न होकर स्वतन्त्र होते हैं ।


(2) क्रियात्मक भिन्नता (Functional Difference):


शंकु अधिक प्रकाश में क्रियाशील होते हैं, जबकि दण्ड कम प्रकाश में । जिन व्यक्तियों के दण्ड शक्तिहीन हो जाते हैं, उन्हें रात्रि में दिखायी नहीं पड़ता क्योंकि ये मन्द प्रकाश तरंगों से उत्तेजित एवं क्रियाशील हो जाते हैं ।


(3) वितरणात्मक भिन्नता (Distributional Difference):


मनुष्य की आँख में शंकुओं की अपेक्षा दण्ड बहुत अधिक संख्या में पाये जाते हैं । जहाँ शंकु अधिक पाये जाते हैं, उस स्थान को पति बिन्दु (Yellow Spot) कहते हैं । इसी के बीच में दबे स्थान को फोबिया या दृष्टि केन्द्र कहते हैं । जहाँ पर किसी वस्तु की आकृति अत्यन्त स्पष्ट होती है, उस स्थान को स्पष्टतम दृष्टि बिन्दु (Clearest Vision Point) भी कहा जाता है ।


अन्त: पटल का वह स्थान है, जहाँ से दृष्टि स्नायु मस्तिष्क की ओर जाते हैं, ध्वजा बिन्दु कहलाता है । उस स्थान पर दृष्टि संवेदना का एक भी सग्राहक न होने के कारण मनुष्य को कुछ भी दिखाई नहीं देता ।


दृष्टि अनुकूलन (Visual Adaptation):


दृष्टि के क्षेत्र में अनुकूलन से अभिप्राय फोटो रिसेप्टर्स (Photo Preceptors) की रिएक्टीविटी (Reactivity) एवं पुतली (Pupils) के आकार में परिवर्तन होने के कारण दण्ड (Rods) के उद्दीप्त होने तथा क्रियाशील होने में लगने वाले समय से है ।


हेच (Hecht) ने इस सम्बन्ध में प्रयोग के आधार पर स्पष्ट किया कि अनुकूलन पर प्रकाश की मात्रा के अतिरिक्त रेटिना (Retina) के उद्दीप्त क्षेत्र तथा आकार का भी प्रभाव पडता है । हैरीमैन (Harriman) के अनुसार अन्य ज्ञानेन्द्रियों में भी इस प्रकार का अनुकूलन करने की प्रभावी प्रक्रिया निहित होती है 

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